आज कि दुनिया उफ्फ यह दुनिया आजकल यह बात कहने में बिल्कुल भी झिझक नहीं होती कि हम अपने यहां से भटकते जा रहे हैं जी हां इसमें एक शेती भी संदेह नहीं है आजकल लोग असली हुनर की पहचान बनने नहीं देना चाहते हैं बल्कि जो लोग की पहचान है उन्हें और बढ़ावा देते हैं चाहे आप किसी कविता की कवि सम्मेलन की बात कर ले या फिर फिल्मी दुनिया के बात कर ले आज चाचा भतीजावाद जाती पाती के नाम पर असली हुनर को तोड़ दिया जाता है शायद यही वह कारण है जिसके कारण भारत तरक्की की ओर नहीं बढ़ रहा है तरक्की की ओर नहीं बढ़ रहा है तरक्की की ओर नहीं बढ़ रहा है आज वह अवसर है जहां अमीर तो और अमीर होते ही जा रहे हैं बल्कि गरीब और भी गरीब हो रहे हैं इसका श्रेय हम भारत की सरकार या फिर किसी भी एक व्यक्ति को इसका जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते जी हां यह कड़वा है मगर सच है इसमें सबका बराबर का बलिदान बराबर का हक है कि हमारे वजह से ही आज सच्चे हुनर को बढ़ावा नहीं मिल रहा है और कुछ कुछ लोग तो मजहब के नाम पर इतने गिर चुके हैं कि अपने मुल्क और पराए मुल्क में फर्क ही भूल गए पता नहीं क्या हो रहा है भारत में कि भारत के बैंकों में क्या कमी रह गई थी ...
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