संस्कृत भाषा की जननी
संस्कृत है मेरा नाम,
मैं संतो की अन्सुल्झी पेहली।
रस बहरे गीतो का आनांद है मुझमे,
मैं सभी भाषाओं की जननी।।
संस्कृत है मेरा नाम,
ज्ञान की पितारे की सहेली।
एक शब्द को हजार तरह से लिखने
कि छमता है मूझमे,
मैं शारदा की जननी।।
संस्कृत है मेरा नाम,
मैं कविता की सार,
मैं हर वानी की आधार,
मैं संस्कृति की रानी,
मैं प्रकृति की कोख की सुता,
देव जिसके सामने झूका,
मेरा उच्चारन है आसान,
मैं भाषाओ की जननी,
संस्कृत है मेरा नाम।।
मैं भुलाई गई सभ्यता,
मैं रूलाई गई मां।
मैं भाषा की जननी,
संस्कृत है मेरा नाम।।
मैं ही तुम्हारी सूत्र,
मैं ही तुम्हारी जरूरत।
आओ अपनाओ मूझे,
संस्कृत मेरा नाम।।
अमन राजपूत
््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््
Satyam Shivam Sundaram
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteWell done.
ReplyDeleteBest one
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